Monday, March 12, 2012

जिव्हा पर व्यंग्य होली के रंग


लोगों ने सोचा की क्यों ना होली की हुर्डंग,और गुलाल के रंग का मज़ा ले ही,
कभी मुस्करा कर, कभी चिढ़ा कर ,थोड़े कटाक्ष का मज़ा ले ही लें ,
हम भी आखिर "हमी" हैं , किसी से खुद को कम तो ना समझेंगे ,
मसखरी बस से कैसे छोड़ दें, 'जिव्हा पर व्यंग्य' का मज़ा अब ले ही लें.

देखने में अजब ही सी एक चीज़ आई है,
'जीभ' ही है जो प्रभु ने ,बड़ी फुर्सत से बनाई है ;
सौ सौ हुनर दिए हैं इस छोटी सी कलम और तलवार को,
और इसने है की जब देखो तलवार ही चलाई है .

अरे नामुराद थोडा लिहाज़ ही कर लिया होता ,
पकवानों को देखकर कैसे लप्ल्पायी थी तुम,
इतना ही ख्याल कर लिया होता,
सब कुछ कहने की ज़रुरत ही कब होती है ,
इतना सा दिल से सवाल तो कर लिया होता ?

वह भी तुनक कर बोली , फूल बरसाऊँ या कैंची चलाऊं मेरी मर्ज़ी है ,
"तारीफ़" के लिए तो दिल को साथ लेने की भी अजब बेदर्दी है;
इसलिए तो एकाकी ही काम को अंजाम देती हूँ मैं,
मिर्ची से भी तीखी होकर या कभी ख़ामोशी से ही कत्लेआम करती हूँ मैं.

होली ही तो मौका है जब लोग दिल का मलाल बयां करते हैं ,
कुछ गिले शिकवे दूर करते हैं, तो कुछ स्नेह प्रेम का रस भरते हैं ;
पर ऐसे में भी मैं( जीभ) अपना गुबार निकल ही लेती हूँ ,
बुरा ना मनो होली है कहकर हलके से होंठो को दबा ही लेती हूँ.

मेरा ही तो कमाल है दोस्तों जो तुम्हे रूठने मनाने के बहाने मिलते हैं ,
वरना यूँ ही कहाँ जीवन में ऐसे पल सुहाने मिलते हैं .

Saturday, December 31, 2011

नव वर्ष २०१२



नूतन वर्ष का है अभिनन्दन,इस पल गत का पुनरवलोकन,
कितना खोया कितना पाया,उन सब का फिर फिर अवलोकन;
इतना प्यार दिया स्वजनों ने ,कई जन्मो का ऋणी बनाया
कृपा ईश की इतनी हुई की, सुदृढ़ हुआ परिवार हमारा.
              
कितना अद्भुत लम्हा है यह ,कैसे कैसे भाव  जगाता,
नेह,प्रेम ,अवसाद सभी की ,माला है ये गुथता जाता .
जैसे जैसे दिवस बीतते सब विस्मृत होते जाते हैं ,
गम खुशियों की छड़ी को पकडे हम आगे बढ़ते जाते हैं.

नूतन वर्ष हमे आशा का नया सवेरा दिखलायेगा,
नवल राह पर, नवल चाह से हमको बढ़ना सिखलाएगा,
नूतन स्वप्न नयन में सजते और उमंगें मन में पलती ,
आकांशा की सभी तरंगे, नव आँचल अब ढक जायेगा.

स्वयं सफल बन करें राष्ट्र उन्नयन ,सही दिशा हम चल पायें,
'मैं' को छोड़ "हम" को पकड़ें, और प्रगति पथ पर बढ़ जाएँ;
नव अरुणोदय की अरुणिमा, का भी दिल कल भर आएगा 
नव वर्ष की मंगल किरणे, वह ही जन जन तक पहुंचाएगा .
                                                        
"नव वर्ष की सभी को हार्दिक शुभकामनायें "

Thursday, August 11, 2011

समय की धारा



बहुत देर से पत्तों की सरसराहट को सुनते सुनते,
मन कितने ही पुराने पलों को फिर छू आया,
जब बारिश की पहली बूँद माथे पर पड़ी,
तब एहसास हुआ की कितने बरस बीत गए,
और अब भी ये बाँवरा कुछ न बिसरा पाया.

एक लम्हे में एक दशक को जी लिया जैसे,
बचपन से जवानी का सफ़र तय किया हो जैसे,
सारे चेहरे जो यूँ ही बस टकराए होंगे कभी,
ख्यालों के समंदर में नज़र आये,तब फिर यकीन हुआ,
समय की धारा का आवेग ही तो था जो हम  बह निकले,
वरना पलों की पकड़ से छूटने का दम भरते कैसे.

कुछ घटनाओं और लोगों की मन पर छाप अमिट होती है,
उनसे मिले प्यार और दर्द में भी एक कशिश होती है,
वो दोस्त जिनसे "दिल चाहता है " की तरह साथ रहने का वादा करते थे,
जिनके साथ दुनिया पर अपना परचम लहराने की सोचा करते थे,
जब बारिश में भीगते हुए फिर उनका ख्याल आता है,
 तब समय की अटखेलियाँ और भी ज्यादा उजागर होती है.

वृक्षों से पानी की बूंदे टपक रही थी और नेत्रों से  अश्रु,
ना किसी चीज़ का अफ़सोस था और ना ही कोई संताप,
अधरों पर हल्की मुस्कराहट थी और मन में संतोष,
काल की गति ने सब अपनी धुरी से घुमाया था,
सुख और दुःख का अपना ही रास्ता बनाया था.

Friday, June 17, 2011

पापा की परी हूँ मैं


हर लड़की इस एक जगह पर सदा परी ही होती है,
बस पापा का घर होता है जहाँ वो गुडिया ही होती है,
कितने भी रिश्तों में बंध ले, चाहे खुद माँ भी बन जाए,
पर अपने प्यारे पापा की वो राजकुमारी ही होती है.
             पापा ही होते हैं जो बात बात पर बहलाते,
             नखरे अपनी लाड़ली के पलकों पर हैं सजाते,
             कभी खेल में खुद बच्चे बन जाते ,
            तो कभी मार्ग दर्शक बन मंज़िल की राह बताते.
                     वो उनके कंधो पर बैठकर मेले में घूमना,
                     या फिर स्कूटर पर आगे खड़े होना,
                     उनका ये पूछना की ,मज़ा आया ,
                     उस पर मेरा ये कहना की एक बार और ना;
                     ऐसा लगता है मानो सब कल की ही बातें हो ,
                     पर एक दशक है बीता जैसे जाने कब की ये बातें हों.
                              मन भी कितना अल्हड़ होता,कैसी कैसी जिद्द करता था ,
                              पापा सब पूरा कर देंगे,जानता था, इसलिए तो इतना निडर था,
                              समय की धारा में जाने कब कहाँ बचपन बहा,
                              अब सोचो तो लगता की हर पल ही कितना अनमोल था.
                                          कितना निर्मल स्नेह है उनका,कितनी निश्छल उसकी छाया,
                                          ये उनके ही संस्कार हैं जो मेरा व्यक्तित्व निखर पाया,
                                          शीश झुकाती जब समक्ष इष्ट के वरदान यही हूँ माँगा करती,
                                          माता-पिता तुम्ही हो मेरे चाहे फिर जन्मों की हो ये प्रवत्ति.
                                                 
                               
                               
                           
      
    


Monday, June 6, 2011

रिश्ते


रिश्ते तो उस मासूम सी कली की तरह होते हैं,
जिन्हें प्यार और विश्वास से सींचो, तभी फूल बनते हैं,
इन्ही में जीवन की सार्थकता छिपी होती है,
बेशक ,ये डोर बहुत ही नाज़ुक होती है .
      कभी तो मन किसे अपना कहे, इस पर भी विचलित रहता है, 
      और कहीं,किसी अजनबी से, एक मुलाकात में ही कोई नाता बनता है,
      कैसी अनोखी है,ये मन की दास्ताँ भी, 
      किसी को दिल के करीब कर लेता है और कोई अपना भी पराया होता है. 
कोई भी रिश्ता कितना गहरा है, इसका मापदंड तय नहीं होता है,
पर फिर भी कहते हैं ,की दर्द का रिश्ता सबसे अटूट होता है,
अगर रौनकें हैं दर पे,तब तो अनजान भी अपने होते हैं,
वो जो दुःख के हलके से एहसास में भी आपके साथ हो,सच्चा हमदर्द होता है.
      दुनिया में रिश्ते दिखावे के लिए भी होते हैं,
      कुछ सहूलियत के लिए और कुछ सिर्फ बताने के लिए भी होते है,
      बहुत जटिल है रिश्तों से जुड़े अपनेपन को समझ पाना,
      क्यूंकि ये कनक की तरह अग्नि में तपकर ही खरे होते हैं.
अजीब संयोग है की रिश्ते जो हमारे जीवन में रस भरते हैं,
हम उसे चखने तक से डरते हैं,
इनकी अहमियत तो इस बाँवरे मन को तब समझ आती है ,
जब उस रिश्ते की नींव  ही हिल जाती है.
       थोड़ी मिठास थोड़े भुलावे से रिश्तों को निभाते चलो,
       तुम सबसे और सब तुमसे ना होंगे इतना स्वयं को समझाते चलो,
       जीवन के राग को गुनगुनाने के लिए,रिश्तों की ज़रुरत होती है,
       छोटी सी बात ये जान लो और इस दुर्गम पथ पर मुस्कराते चलो.
       

     

Saturday, May 28, 2011

भक्ति गीत

ओ कान्हा,तुम आओ अब दुःख हरने,
हर मन में ,बस प्रेम उमंग ही भरने ,
बीते बहुत बरस हैं देखो,एक ही विश्वास में,
की आओगे तुम, रीत अमर ये करने.
    ओ कान्हा ,तुम आओ अब दुःख हरने.      
               रसभरी राधा ने तुम पर,जो प्रीत का रंग चढ़ाया है,
               रहे कहीं भी तुम प्रभु पर,साथ उसी का सुहाया है.
               मीरा की हरि भक्ति ने,सबको ये दिखला दिया,
               कि आते हो सदा तुम,हाँ प्रीत की रीत निभाने.
ओ कान्हा,तुम आओ अब दुःख हरने,
हर मन में,बस प्रेम उमंग ही भरने.......
                 केशव तुम सा बन्धु पाकर,फिर क्या पाना होता है,
                 जो तुम पास नहीं तो फिर ,पाना भी खोना होता है ,
                 पार्थ,द्रौपदी और सुदामा सब ने ये चरितार्थ किया,
                 की मित्र तो बस तुम हो, जो आते हर धर्म निभाने  .
ओ कान्हा,तुम आओ अब दुःख हरने,
हर मन में ,बस प्रेम उमंग ही भरने ...........
                  इस युग में तो प्रभु माया ने गहरा जाल बिछाया है,
                  हर रिश्ते नाते को बस सौदे से ही भरमाया है,
                  फिर अवतार को धर के माधव, मानवता की नींव रखो,
                  हाँ आना होगा तुमको ,फिर से एक अलख जगाने .
ओ कान्हा,तुम आओ अब दुःख हरने,
हर मन में ,बस प्रेम उमंग ही भरने.   
                                   
             
              
               
                 
               
                 
             
                  

Monday, May 23, 2011

भाव और अभिव्यक्ति

सोचो तो ग़र भाव ना होते ,तो हम कैसे रह पाते ,
वाचाल हो या फिर मूक ही सही,क्या कभी कुछ कह पाते?
नज़रें हों या फिर ज़ुबां,भावों से ही जतलाते,
भाव सभी की भाषा बनते,चाहे जो भी मंज़र आते.
                भावों की अभिव्यक्ति भी बहुत ज़रूरी होती है,
                कभी अधरों से ,कभी नज़रों से उनकी पूर्ती होती है;
                बोल तो सभी लेते होंगे शायद ,
               पर बोलने की अदा तो उसके अंदाज़ और छिपे भाव में ही होती है.
शिशुओं को देखो तो ,कैसे हैं ये समझाते ,
चेहरे पे आये भाव ही सब कुछ हमसे कह जाते ,
कभी जो वे करें शरारत, टेढ़ी सी मुस्कान वो देते,
तो कभी भोले पन की ओढ़ के चादर टहलाते.
                 अब वयस्कों की ओर तुम देखो ,बात अनोखी होती है ,
                 जीवन के हर रस को भावों में व्यक्त करने की आदत जो होती है ,
                 कभी क्रोध में होंठ कपकपाने लगते हैं ,और आँखें लाल हो जाती है ,
                 तो कभी स्नेह से भरे नयन ,यूँ ही छलछला उठते हैं;
इतना ही नहीं ,कवियों की कविता की जान होते हैं भाव,
भक्तों के गीतों में भक्ति बन कर उतरते हैं ये भाव,
प्रेमियों की नैया का सहारा होते हैं भाव ,
दिल टूटे या जुड़े ख़त पर उतारे जाते हैं भाव ,
                    रंभाती हुई गौ हो या दहढ़ता हुआ सिंह,भावों की अभिव्यक्ति ही करते हैं,
                    दर्द में कराहने पर अश्रुओं से नेत्र उनके भी भरते हैं ,
                    मनुष्यों को व्यक्त करने के साधन बहुत हैं ,
                    पर फिर भी ना जाने क्यूँ ,बहुत से लोग अभिव्यक्ति से डरते हैं.
प्राणिमात्र  के हर रिश्ते के पूरक बनते हैं भाव,
जहाँ कुछ खोने का डर हो वहाँ भी धीरज धराते हैं भाव,
संपूर्ण धरा पर  मानवता को प्रमाणित करते हैं भाव,
आश्चर्य है ,की एक पलछिन में कितना कुछ कह जाते हैं ये भाव.
                 
                 


                  


                  

Friday, May 13, 2011

ज़िन्दगी



ज़िन्दगी हर रोज़ नया सवेरा लगती है ,
कभी धूप तो कभी छाँव,ऐसा एक बसेरा लगती है.
कहीं तो पंखुड़ी से भी ज्यादा कोमल हो जाती है 
तो कभी पत्थर से भी अधिक सख्त लगती है .
                     इस राह का प्रत्येक पड़ाव कितना कुछ सिखा जाता है, 
                     आशाओं से भरा पूरा ब्रह्माण्ड हमारा ही है ,ये बता जाता है,
                    कठ्नाईयाँ आएँगी निरंतर आगे की ओर अग्रसर होने के प्रयास में ,
                     कभी मन निराशाओं से घिर भी जायेगा,और अँधेरा ही नज़र आएगा ,
                    पर फिर वो जीवन ही क्या,जहाँ सब सुलभता से उपलब्ध हो,
                    आखिर परिश्रम की महत्ता और उसका परिणाम भी तो ये हमे यहीं दर्शायेगा.
ज़िन्दगी निर्झरा की तरह बहती हुई रहने दो ,
हर छोटे बड़े अनुभव को, इसमें सम्मलित होने दो ;
नहीं पता कौन सी निशा शीतल लहर बन कर आये और ये बताये,
की अभिनव भोर का संदेसा है ये ,अब तो तुम मुस्करा दो,
अब तो मुस्करा दो .
           
                   


   

Thursday, May 5, 2011

माँ


दुनिया की किसी भी अक्षर माला को अगर हम देखें, तो वो शब्द जिसका अर्थ हर भाषा में एक ही है वो है -" माँ "
अद्भुत कृति परमात्मा की, जो माँ के रूप में पाई है,
सामने हो या ना हो ,पर सदा ही वो दिल में समाई है .
किसी मोड़ पर जब भी मैंने ,थोड़ी ठोकर खाई है,
एक वो ही तो थी जिसकी आँखें भर भर आई है.
बचपन की यादों ने, जब भी दिल पर दस्तक दी ,
या फिर मेरे अल्हड मन में ,कोई शरारत ही पली,
तितली तू मेरे आँगन की,ऐसा ही वो कहती थी,
तू रहे झूमती ,मदमस्त हवा सी ,
तब भी ,जब फूल बन जाएगी ये कली.
तेरे साये में ही जाना की,ममता कैसी होती है ,
कभी सख्त सख्त,कभी नरम नरम बस तेरे जैसी होती है .
तेरी ही द्रढ़ता ने मुझको दिशा सही है दिखलाई,
जिसके बल पर,नदी सी बहती ,मैं इतनी दूर निकल आई.
मन को देखो चंचल कितना, जब हठ पर आ जाता है,
"माँ" तेरे आँचल में आने, को ही ये तरसाता है,
कितना भी समझाऊँ इसे की, ज़िद्द अच्छी ना होती है,
बाल सुलभ सा उत्तर देता,"माँ" की गोद ही तो सबसे भली होती है.
एक बार बेटा कहकर जैसे ही तू सहलाती है, 
हर स्पर्श यही पूछे की ऐसा सुकून कहीं होता है ?
तिनका भी चुभ जाये मुझे तो,दर्द तुझे ही होता है ,
विस्मित करती यही बात ,की ममता का रिश्ता ही ऐसा होता है.
लाड़ ,दुलार को परिभाषित करने की अब तो वजह नहीं होती है ,
क्यूंकि उसकी सीरत तो सिर्फ "माँ" के जैसी होती है ;
बस "माँ"ऐसी ही होती है ;हाँ तेरे जैसी होती है . 

Tuesday, May 3, 2011

दिलजले

मुस्कराने को कहा तो,चेहरा फिराये बैठ गए ,
ऐ दोस्त इतना तो बता दे ,की ये तकरार क्या है ?
मैंने तो मन से निभाया ,तेरी हर एक रस्म को ,
तू इसे भी ख़ता समझे ,तो इतना बता दे प्यार क्या है ?
दिल से लगा के रखा है ,तेरे हर ख्याल को,
दीवानगी भी रास ना आई तुझे ,फिर भी ये  एहसास क्या है ?
पास रहने का जो वादा, किया था तूने कभी ,
अब आप ही ये पूछते हैं, की उम्र भर का साथ क्या है?
हर ज़र्रे ने देखा है ,मेरे जूनून को तेरे लिए ,
उस पर भी सब यही पूछे ,की मेरी औकात क्या है ?
बेरुखी भी है मुझे मंजूर ,पर फिर भी आँख भर आई है ,
बस तू इतना ही बता दे, की इसका सबब  क्या है ?
पीता तो पहले भी मैं था,पर वो प्याले और थे ,
मुफलिसी में पी तो जाना, की इसका अंजाम क्या है?
तन्हा ही चला हूँ ,अब ज़िन्दगी की राह में, 
दिलजला कहे की भोर है ये ,तो आप ही बता दें की फिर शाम क्या है?