Thursday, August 11, 2011

समय की धारा



बहुत देर से पत्तों की सरसराहट को सुनते सुनते,
मन कितने ही पुराने पलों को फिर छू आया,
जब बारिश की पहली बूँद माथे पर पड़ी,
तब एहसास हुआ की कितने बरस बीत गए,
और अब भी ये बाँवरा कुछ न बिसरा पाया.

एक लम्हे में एक दशक को जी लिया जैसे,
बचपन से जवानी का सफ़र तय किया हो जैसे,
सारे चेहरे जो यूँ ही बस टकराए होंगे कभी,
ख्यालों के समंदर में नज़र आये,तब फिर यकीन हुआ,
समय की धारा का आवेग ही तो था जो हम  बह निकले,
वरना पलों की पकड़ से छूटने का दम भरते कैसे.

कुछ घटनाओं और लोगों की मन पर छाप अमिट होती है,
उनसे मिले प्यार और दर्द में भी एक कशिश होती है,
वो दोस्त जिनसे "दिल चाहता है " की तरह साथ रहने का वादा करते थे,
जिनके साथ दुनिया पर अपना परचम लहराने की सोचा करते थे,
जब बारिश में भीगते हुए फिर उनका ख्याल आता है,
 तब समय की अटखेलियाँ और भी ज्यादा उजागर होती है.

वृक्षों से पानी की बूंदे टपक रही थी और नेत्रों से  अश्रु,
ना किसी चीज़ का अफ़सोस था और ना ही कोई संताप,
अधरों पर हल्की मुस्कराहट थी और मन में संतोष,
काल की गति ने सब अपनी धुरी से घुमाया था,
सुख और दुःख का अपना ही रास्ता बनाया था.

2 comments:

rajni chhimpa said...

gr8 poet Anchal..good job..

Raji said...

Lovely poem anchal.

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