Friday, June 17, 2011

पापा की परी हूँ मैं


हर लड़की इस एक जगह पर सदा परी ही होती है,
बस पापा का घर होता है जहाँ वो गुडिया ही होती है,
कितने भी रिश्तों में बंध ले, चाहे खुद माँ भी बन जाए,
पर अपने प्यारे पापा की वो राजकुमारी ही होती है.
             पापा ही होते हैं जो बात बात पर बहलाते,
             नखरे अपनी लाड़ली के पलकों पर हैं सजाते,
             कभी खेल में खुद बच्चे बन जाते ,
            तो कभी मार्ग दर्शक बन मंज़िल की राह बताते.
                     वो उनके कंधो पर बैठकर मेले में घूमना,
                     या फिर स्कूटर पर आगे खड़े होना,
                     उनका ये पूछना की ,मज़ा आया ,
                     उस पर मेरा ये कहना की एक बार और ना;
                     ऐसा लगता है मानो सब कल की ही बातें हो ,
                     पर एक दशक है बीता जैसे जाने कब की ये बातें हों.
                              मन भी कितना अल्हड़ होता,कैसी कैसी जिद्द करता था ,
                              पापा सब पूरा कर देंगे,जानता था, इसलिए तो इतना निडर था,
                              समय की धारा में जाने कब कहाँ बचपन बहा,
                              अब सोचो तो लगता की हर पल ही कितना अनमोल था.
                                          कितना निर्मल स्नेह है उनका,कितनी निश्छल उसकी छाया,
                                          ये उनके ही संस्कार हैं जो मेरा व्यक्तित्व निखर पाया,
                                          शीश झुकाती जब समक्ष इष्ट के वरदान यही हूँ माँगा करती,
                                          माता-पिता तुम्ही हो मेरे चाहे फिर जन्मों की हो ये प्रवत्ति.
                                                 
                               
                               
                           
      
    


Monday, June 6, 2011

रिश्ते


रिश्ते तो उस मासूम सी कली की तरह होते हैं,
जिन्हें प्यार और विश्वास से सींचो, तभी फूल बनते हैं,
इन्ही में जीवन की सार्थकता छिपी होती है,
बेशक ,ये डोर बहुत ही नाज़ुक होती है .
      कभी तो मन किसे अपना कहे, इस पर भी विचलित रहता है, 
      और कहीं,किसी अजनबी से, एक मुलाकात में ही कोई नाता बनता है,
      कैसी अनोखी है,ये मन की दास्ताँ भी, 
      किसी को दिल के करीब कर लेता है और कोई अपना भी पराया होता है. 
कोई भी रिश्ता कितना गहरा है, इसका मापदंड तय नहीं होता है,
पर फिर भी कहते हैं ,की दर्द का रिश्ता सबसे अटूट होता है,
अगर रौनकें हैं दर पे,तब तो अनजान भी अपने होते हैं,
वो जो दुःख के हलके से एहसास में भी आपके साथ हो,सच्चा हमदर्द होता है.
      दुनिया में रिश्ते दिखावे के लिए भी होते हैं,
      कुछ सहूलियत के लिए और कुछ सिर्फ बताने के लिए भी होते है,
      बहुत जटिल है रिश्तों से जुड़े अपनेपन को समझ पाना,
      क्यूंकि ये कनक की तरह अग्नि में तपकर ही खरे होते हैं.
अजीब संयोग है की रिश्ते जो हमारे जीवन में रस भरते हैं,
हम उसे चखने तक से डरते हैं,
इनकी अहमियत तो इस बाँवरे मन को तब समझ आती है ,
जब उस रिश्ते की नींव  ही हिल जाती है.
       थोड़ी मिठास थोड़े भुलावे से रिश्तों को निभाते चलो,
       तुम सबसे और सब तुमसे ना होंगे इतना स्वयं को समझाते चलो,
       जीवन के राग को गुनगुनाने के लिए,रिश्तों की ज़रुरत होती है,
       छोटी सी बात ये जान लो और इस दुर्गम पथ पर मुस्कराते चलो.