Monday, May 23, 2011

भाव और अभिव्यक्ति

सोचो तो ग़र भाव ना होते ,तो हम कैसे रह पाते ,
वाचाल हो या फिर मूक ही सही,क्या कभी कुछ कह पाते?
नज़रें हों या फिर ज़ुबां,भावों से ही जतलाते,
भाव सभी की भाषा बनते,चाहे जो भी मंज़र आते.
                भावों की अभिव्यक्ति भी बहुत ज़रूरी होती है,
                कभी अधरों से ,कभी नज़रों से उनकी पूर्ती होती है;
                बोल तो सभी लेते होंगे शायद ,
               पर बोलने की अदा तो उसके अंदाज़ और छिपे भाव में ही होती है.
शिशुओं को देखो तो ,कैसे हैं ये समझाते ,
चेहरे पे आये भाव ही सब कुछ हमसे कह जाते ,
कभी जो वे करें शरारत, टेढ़ी सी मुस्कान वो देते,
तो कभी भोले पन की ओढ़ के चादर टहलाते.
                 अब वयस्कों की ओर तुम देखो ,बात अनोखी होती है ,
                 जीवन के हर रस को भावों में व्यक्त करने की आदत जो होती है ,
                 कभी क्रोध में होंठ कपकपाने लगते हैं ,और आँखें लाल हो जाती है ,
                 तो कभी स्नेह से भरे नयन ,यूँ ही छलछला उठते हैं;
इतना ही नहीं ,कवियों की कविता की जान होते हैं भाव,
भक्तों के गीतों में भक्ति बन कर उतरते हैं ये भाव,
प्रेमियों की नैया का सहारा होते हैं भाव ,
दिल टूटे या जुड़े ख़त पर उतारे जाते हैं भाव ,
                    रंभाती हुई गौ हो या दहढ़ता हुआ सिंह,भावों की अभिव्यक्ति ही करते हैं,
                    दर्द में कराहने पर अश्रुओं से नेत्र उनके भी भरते हैं ,
                    मनुष्यों को व्यक्त करने के साधन बहुत हैं ,
                    पर फिर भी ना जाने क्यूँ ,बहुत से लोग अभिव्यक्ति से डरते हैं.
प्राणिमात्र  के हर रिश्ते के पूरक बनते हैं भाव,
जहाँ कुछ खोने का डर हो वहाँ भी धीरज धराते हैं भाव,
संपूर्ण धरा पर  मानवता को प्रमाणित करते हैं भाव,
आश्चर्य है ,की एक पलछिन में कितना कुछ कह जाते हैं ये भाव.
                 
                 


                  


                  

1 comment:

Raji said...

Nice one Anchal..expressions deeply expressed.

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