Friday, May 13, 2011

ज़िन्दगी



ज़िन्दगी हर रोज़ नया सवेरा लगती है ,
कभी धूप तो कभी छाँव,ऐसा एक बसेरा लगती है.
कहीं तो पंखुड़ी से भी ज्यादा कोमल हो जाती है 
तो कभी पत्थर से भी अधिक सख्त लगती है .
                     इस राह का प्रत्येक पड़ाव कितना कुछ सिखा जाता है, 
                     आशाओं से भरा पूरा ब्रह्माण्ड हमारा ही है ,ये बता जाता है,
                    कठ्नाईयाँ आएँगी निरंतर आगे की ओर अग्रसर होने के प्रयास में ,
                     कभी मन निराशाओं से घिर भी जायेगा,और अँधेरा ही नज़र आएगा ,
                    पर फिर वो जीवन ही क्या,जहाँ सब सुलभता से उपलब्ध हो,
                    आखिर परिश्रम की महत्ता और उसका परिणाम भी तो ये हमे यहीं दर्शायेगा.
ज़िन्दगी निर्झरा की तरह बहती हुई रहने दो ,
हर छोटे बड़े अनुभव को, इसमें सम्मलित होने दो ;
नहीं पता कौन सी निशा शीतल लहर बन कर आये और ये बताये,
की अभिनव भोर का संदेसा है ये ,अब तो तुम मुस्करा दो,
अब तो मुस्करा दो .
           
                   


   

3 comments:

Hetal said...

Badhiya ekdum badhiya!

Raji said...

Good one Anchal...and the picture is apt for this...is baar Mr. A ko bhi apni poem mein jagah de di :)

Anchal said...

Thanks @ Hetal
Thank you @ Raji ,yup :P

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