Tuesday, April 26, 2011

हर्षा

वो अकेले ही चला जा रहा था, ज़िन्दगी की राह में,
फिर भी हर मोड़ पर ,तेरा इंतज़ार तो था .
हर नज़र उठती थी, की शायद अब तू आई ,
देख उसके मन में ,तेरा अक्स तो था.
जब देखा होगा तुझे उसने पहली बार ,
दिल की धड़कने इस तरह बढ़ जाएँगी,
पलकें झपकने को भी तैयार ना होंगी,
इस छोटी सी बात का भी इल्म ना था.
कब तू हंसती,खिलखिलाती,दिल में समा गयी,
और उसके जीवन के हर पल को महका गयी,
जब आँख खुली तो ,हकीकत बयां कर पाया वो,
की ये तो तेरा ही जादू था ,कोई ख़्वाब ना था.
तू बने प्रेरक उसकी ,उसको यह आभास दिलाये,
की हर्षा के बिना,अधूरे अंशुल भी ना नज़र आयें,
हर दिन होली के रंगों सा हो, जो प्यार तुम्हारा महकाए,
दिवाली की रातों जैसे, रहो सदैव प्रेम की ज्योत जलाए.

2 comments:

Raji said...

Very well written dear...keep the poems flowing.

Anchal said...

Thanks a lot Raji ......will sure do it.

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